Ticker

10/recent/ticker-posts

Jab Arjun Ka Ghamand Choor Choor Hua Lyrics in Hindi - जब अर्जुन का घमंड चूर-चूर हुआ हिंदी लिरिक्स: प्रेरक कहानी





Jab Arjun Ka Ghamand Choor Choor Hua







यह भी देखें - You May Also Like







Jab Arjun Ka Ghamand Choor Choor Hua Lyrics in Hindi - जब अर्जुन का घमंड चूर-चूर हुआ हिंदी लिरिक्स: प्रेरक कहानी



एक बार अर्जुन को अहंकार हो गया कि वही भगवान के सबसे बड़े भक्त हैं। उनको श्रीकृष्ण ने समझ लिया। एक दिन वह अर्जुन को अपने साथ घुमाने ले गए। रास्ते में उनकी मुलाकात एक गरीब ब्राह्मण से हुई। उसका व्यवहार थोड़ा विचित्र था। वह सूखी घास खा रहा था और उसकी कमर से तलवार लटक रही थी।


अर्जुन ने उससे पूछा: आप तो अहिंसा के पुजारी हैं। जीव हिंसा के भय से सूखी घास खाकर अपना गुजारा करते हैं। लेकिन फिर हिंसा का यह उपकरण तलवार क्यों आपके साथ है?


ब्राह्मण ने जवाब दिया: मैं कुछ लोगों को दंडित करना चाहता हूं।

आपके शत्रु कौन हैं? अर्जुन ने जिज्ञासा जाहिर की।


ब्राह्मण ने कहा: मैं चार लोगों को खोज रहा हूं, ताकि उनसे अपना हिसाब चुकता कर सकूं।


1) सबसे पहले तो मुझे नारद की तलाश है। नारद मेरे प्रभु को आराम नहीं करने देते, सदा भजन-कीर्तन कर उन्हें जागृत रखते हैं।



2) फिर मैं द्रौपदी पर भी बहुत क्रोधित हूं। उसने मेरे प्रभु को ठीक उसी समय पुकारा, जब वह भोजन करने बैठे थे। उन्हें तत्काल खाना छोड़ पांडवों को दुर्वासा ऋषि के शाप से बचाने जाना पड़ा। उसकी धृष्टता तो देखिए। उसने मेरे भगवान को जूठा खाना खिलाया।


3) आपका तीसरा शत्रु कौन है?: अर्जुन ने पूछा। वह है हृदयहीन प्रह्लाद। उस निर्दयी ने मेरे प्रभु को गरम तेल के कड़ाह में प्रविष्ट कराया, हाथी के पैरों तले कुचलवाया और अंत में खंभे से प्रकट होने के लिए विवश किया।


4) और चौथा शत्रु है अर्जुन। उसकी दुष्टता देखिए। उसने मेरे भगवान को अपना सारथी बना डाला। उसे भगवान की असुविधा का तनिक भी ध्यान नहीं रहा। कितना कष्ट हुआ होगा मेरे प्रभु को! यह कहते ही ब्राह्मण की आंखों में आंसू आ गए।


यह देख अर्जुन का घमंड चूर-चूर हो गया। उसने श्रीकृष्ण से क्षमा मांगते हुए कहा: मान गया प्रभु, इस संसार में न जाने आपके कितने तरह के भक्त हैं। मैं तो कुछ भी नहीं हूं।



Pleas Like And Share This @ Your Facebook Wall We Need Your Support To Grown UP | For Supporting Just Do LIKE | SHARE | COMMENT ...





CATEGORIES




Print Friendly and PDF

Post a Comment

0 Comments